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आइने से मुकर गया कोई | शाही शायरी
aaine se mukar gaya koi

ग़ज़ल

आइने से मुकर गया कोई

राशिद आज़र

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आइने से मुकर गया कोई
मुझ पे इल्ज़ाम धर गया कोई

ज़िंदगी ले तुझे मुबारक हो
जीते जी आज मर गया कोई

उम्र भर जी रहा था मर मर के
फिर भी मरने से डर गया कोई

माँगने को जो हाथ फैलाया
रेज़ा रेज़ा बिखर गया कोई

साथ था रंज-ए-ख़ुश-दिली 'आज़र'
रात जब अपने घर गया कोई