आइना देखता रहता है सँवरने वाला
कौन अब होगा यहाँ प्यार पे मरने वाला
किस की चाहत का भरम रखता है दिल में अपने
तेरी ख़ातिर नहीं कोई भी मरने वाला
बज़्म से उठने से पहले ये ज़रा सोच भी ले
ख़्वाब बन जाएगा नज़रों से गुज़रने वाला
हर घड़ी वो भी तो लोगों की तरह हैं रहता
पहले सिमटा था कहा ख़ुद से बिखरने वाला
हम नहीं कहते ये हालात बताते हैं हमें
कब सुकूँ पाता है हालात से डरने वाला
गर्दिशें वक़्त से कहता है कोई जा के 'किरन'
एक लम्हा भी नहीं पास ठहरने वाला

ग़ज़ल
आइना देखता रहता है सँवरने वाला
कविता किरन