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आईना साफ़ था धुँदला हुआ रहता था मैं | शाही शायरी
aaina saf tha dhundla hua rahta tha main

ग़ज़ल

आईना साफ़ था धुँदला हुआ रहता था मैं

अंजुम सलीमी

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आईना साफ़ था धुँदला हुआ रहता था मैं
अपनी सोहबत में भी घबराया हुआ रहता था मैं

अपना चेहरा मुझे कतबे की तरह लगता था
अपने ही जिस्म में दफ़नाया हुआ रहता था मैं

जिस मोहब्बत की ज़रूरत थी मिरे लोगों को
उस मोहब्बत से भी बाज़ आया हुआ रहता था मैं

तू नहीं आता था जिस रोज़ टहलने के लिए
शाख़ के हाथ पे कुम्लाया हुआ रहता था मैं

दूसरे लोग बताते थे कि मैं कैसा हूँ
अपने बारे ही में बहकाया हुआ रहता था मैं