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आइना प्यार का इक अक्स तिरा माँगे है | शाही शायरी
aaina pyar ka ek aks tera mange hai

ग़ज़ल

आइना प्यार का इक अक्स तिरा माँगे है

नियाज़ हुसैन लखवेरा

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आइना प्यार का इक अक्स तिरा माँगे है
दिल भरे शहर में बस तेरी सदा माँगे है

जिस्म ख़ुद-सर है कि हर दर्द सहे जाता है
ऐसा ज़िद्दी है कि जीने की सज़ा माँगे है

रात ढल जाए तो हाथों की लकीरें जागें
बे-सुकूँ ज़ेहन हमेशा ये दुआ माँगे है

ख़ुश बदन हो तो ज़रा ख़ुद को बचा कर रक्खो
मौसम-ए-ज़र्द कोई पेड़ हरा माँगे है

मैं ही ख़ुद को किसी मक़्तल में सजा कर रख दूँ
तेज़ आँधी कोई नन्हा सा दिया माँगे है

कौन है जो कि सराबों से उलझना चाहे
कौन है जो कि मिरे घर का पता माँगे है

परवरिश जिस में गुल-ए-ताज़ा की होती है 'नियाज़'
प्यार का फूल वही आब-ओ-हवा माँगे है