EN اردو
आईना-ए-दिल में कुछ अगर है | शाही शायरी
aaina-e-dil mein kuchh agar hai

ग़ज़ल

आईना-ए-दिल में कुछ अगर है

जोशिश अज़ीमाबादी

;

आईना-ए-दिल में कुछ अगर है
तेरा ही जमाल जल्वा-गर है

हम मर गए तेरी जुस्तुजू में
बे-रहम कहाँ है तू किधर है

रहबर नहीं चाहती रह-ए-इश्क़
वाँ शौक़ ही अपना राहबर है

क्यूँ मारे है लाफ़ हज्ज-ए-अकबर
अपने किए पर भी कुछ नज़र है

काबे सी जगह पहुँच फिर आया
तू हाजी नहीं है गीदी ख़र है

उस दर ही की आरज़ू में 'जोशिश'
ये मुश्त-ए-ग़ुबार दर-ब-दर है