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आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम | शाही शायरी
aaina dekhta hun nazar aa rahe ho tum

ग़ज़ल

आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम

हैरत गोंडवी

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आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम
कितने क़रीब मुझ से हुए जा रहे हो तुम

ये क्या फ़रेब है कि जो फ़रमा रहे हो तुम
मैं ख़ुद को ढूँढता हूँ मिले जा रहे हो तुम

तुम को ये पेच-ओ-ताब की मुश्किल है मेरी राह
मुझ को ये इज़्तिराब कि घबरा रहे हो तुम

इतना भी कर सकेगा न क्या मेरा दस्त-ए-शौक़
क्यूँ ज़ुल्फ़-ए-काएनात को सुलझा रहे हो तुम

तुम हो तुम्हारा मैं हूँ तुम्हारी बहार है
ये किस को देख देख के शर्मा रहे हो तुम

आँखों में अश्क दिल में ख़लिश लब पे है फ़ुग़ाँ
ये ख़ुद तड़प रहे हो कि तड़पा रहे हो तुम

मेरा चमन तो है मगर अपना कहूँ न मैं
हाँ मैं समझ रहा हूँ जो समझा रहे हो तुम

है उन को नाज़ पर्दा-ए-माह-ओ-नुजूम पर
कैसे कहूँ कि साफ़ नज़र आ रहे हो तुम

रह रह के कौंदती हैं अंधेरे में बिजलियाँ
तुम याद कर रहे हो कि याद आ रहे हो तुम

इस का मलाल है कि सितम सह रहे हैं हम
इस का गिला नहीं कि सितम ढा रहे हो तुम