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आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए | शाही शायरी
aaina ban jaiye jalwa-asar ho jaiye

ग़ज़ल

आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए

सबा अकबराबादी

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आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
सामने वो हों तो सर-ता-पा नज़र हो जाइए

सोज़-ए-दिल से गोशा-ए-तन्हाई में क्या फ़ाएदा
इस तरह जलिए चराग़-ए-रहगुज़र हो जाइए

इस उदासी का धुँदलका ख़त्म हो शायद कभी
शाम से पहले ही उनवान-ए-सहर हो जाइए

मंज़िल-ए-उल्फ़त पे दिल तन्हा पहुँच सकता नहीं
आप अगर चाहें तो मेरे हम-सफ़र हो जाइए

ख़ुद-बख़ुद सारे ज़माने को ख़बर हो जाएगी
होशियारी है कि सब से बे-ख़बर हो जाइए

शौक़ कहता है कि सज्दों में तसलसुल चाहिए
दिल ये कहता है कि जज़्ब-ए-संग-ए-दर हो जाइए

जब किसी से पेश-क़दमी ज़ुल्म की रुकती न हो
उस जगह लाज़िम है ख़ुद सीना-सिपर हो जाइए

इक अज़ाब-ए-मुस्तक़िल है फ़िक्र-ए-तामीर-ए-मकाँ
साकिन-ए-सहरा-ए-बे-दीवार-ओ-दर हो जाइए

कश्मकश में इन्फ़िरादिय्यत ज़रूरी है 'सबा'
जिस तरफ़ कोई नहीं होता उधर हो जाइए