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आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे | शाही शायरी
aahista-rawi shahr ko kahil na bana de

ग़ज़ल

आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे

तालीफ़ हैदर

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आहिस्ता-रवी शहर को काहिल न बना दे
ख़ामोशी-ए-ग़म ख़्वाब का माइल न बना दे

इतना भी मोहब्बत को न सोचे मिरी हस्ती
ये मोजज़ा-ए-फ़िक्र कहीं दिल न बना दे

ईसा नहीं फिर भी मुझे अंदेशा है ख़ुद से
हस्ती मिरी कुछ शोबदा-ए-गिल न बना दे

इस तरह तुझे इश्क़ किया है कि ये दुनिया
हम को ही कहीं इश्क़ का हासिल न बना दे

मैं उस से समुंदर ही कोई माँगता लेकिन
डर था वो कहीं फिर कोई साहिल न बना दे