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आहें अफ़्लाक में मिल जाती हैं | शाही शायरी
aahen aflak mein mil jati hain

ग़ज़ल

आहें अफ़्लाक में मिल जाती हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

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आहें अफ़्लाक में मिल जाती हैं
मेहनतें ख़ाक में मिल जाती हैं

सूरतें आबला-हा-ए-दिल की
ख़ोशा-ए-ताक में मिल जाती हैं

सैद-ए-बिस्मिल की निगाहें सय्याद
तेरे फ़ितराक में मिल जाती हैं

निगहें यार की जूँ तार-ए-रफ़ू
जिगर-ए-चाक में मिल जाती हैं

पोपले ज़ाहिदों की खाते वक़्त
ठोड़ियाँ नाक में मिल जाती हैं

थलकियाँ दिल की 'बक़ा' देखूँगी
ज़ख़्म-ए-कावाक में मिल जाती हैं