आह ये आँसू प्यारे प्यारे
लिख दे हिसाब-ए-ग़म में हमारे
दिल भी तुम्हारा हम भी तुम्हारे
अच्छा तुम जीते हम हारे
बसने भी दे अपनी गली में
बरसों फिरे हैं मारे मारे
अपना अपना मज़ाक़-ए-ग़म है
उन का तबस्सुम अश्क हमारे
भूल न जाना ऐ ग़म-ए-जानाँ
जी लेते हैं तेरे सहारे
आह मआ'ल-ए-शर्त-ए-मोहब्बत
जीती-जिताई बाज़ी हारे
दिल तो है ख़ुद उजड़ा उजड़ा सा
आह के गेसू कौन सँवारे
ज़िक्र-ए-मोहब्बत जुर्म है जैसे
नाम न ले कोई उन के मारे
नाम न निकला उस ज़ालिम का
रह गए काँप के होंट हमारे
थे तो 'सिराज' भी उस महफ़िल में
सब से अलग बैठे थे किनारे
ग़ज़ल
आह ये आँसू प्यारे प्यारे
सिराज लखनवी