आह वो कौन था ख़ुदा मारा
जिस ने उस से मुझे लगा मारा
क्या ग़ज़ब थी वो जुम्बिश-ए-अबरू
साफ़ जैसे कि नीमचा मारा
बा'द मुद्दत मिले थे कल उन से
आज लोगों ने फिर लगा मारा
वस्ल की शब भी मैं न सोया आह
रोज़-ए-हिज्र उन के ख़ौफ़ का मारा
पा के मर्ज़ी खुला जो बातों में
ये हँसाया कि बस लुटा मारा
जिन्स-ए-सब्र-ओ-ख़िरद लुटे 'मारूफ़'
मुल्क-ए-दिल फ़ौज-ए-ग़म ने आ मारा
ग़ज़ल
आह वो कौन था ख़ुदा मारा
मारूफ़ देहलवी