आह-ओ-नाला ने कुछ असर न किया
हिज्र की शाम को सहर न किया
तल्ख़ी-ए-सब्र ख़ुश-गवार हुई
ज़हर ने भी मुझे असर न किया
सर को फोड़ा जो कोहकन ने तो क्या
इश्क़ में किस ने नज़्र-ए-सर न किया
कौन सी ऐसी आफ़त आई जब
आसमाँ ने मुझे सिपर न किया
काँपता है वो दिल ग़ज़ब से तिरे
जिस ने ऐ बुत ख़ुदा का डर न किया
जिस ने देखा वो रोए आतिशनाक
फिर गुमाँ उसे ने बर्क़ पर न किया
कूच अपना भी हो गया 'अहक़र'
ग़म-ओ-अंदोह ने सफ़र न किया

ग़ज़ल
आह-ओ-नाला ने कुछ असर न किया
राधे शियाम रस्तोगी अहक़र