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आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना | शाही शायरी
aah ko baad-e-saba dard ko KHushbu likhna

ग़ज़ल

आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना
है बजा ज़ख़्म-ए-बदन को गुल-ए-ख़ुद-रू लिखना

दर्द भीगी हुई रातों में चमक उट्ठा है
हम को लिखना है तो बरसात का जुगनू लिखना

ख़्वाब टकरा के हक़ाएक़ से हुए सद-पारा
अब इन्हें आँख से ढलके हुए आँसू लिखना

तू ने सुल्तानी-ए-जम्हूर बदल दीं क़द्रें
आज फ़रहाद को मुश्किल नहीं ख़ुसरव लिखना

अब मुनासिब नहीं हम-अस्र ग़ज़ल को यारो
किसी बजती हुई पाज़ेब का घुंघरू लिखना

हुनर-अफ़्शानी-ए-ख़ामा को दुआ दो कि 'फ़ज़ा'
लफ़्ज़ को सहल हुआ नाफ़ा-ए-आहू लिखना