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आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं | शाही शायरी
aah karna dil-e-hazin na kahin

ग़ज़ल

आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं

बेखुद बदायुनी

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आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं
आग लग जाएगी कहीं न कहीं

मिरे दिल से निकल के दुनिया में
चैन से हसरतें रहीं न कहीं

बे-हिजाबी निगाह-ए-उल्फ़त की
देखे वो शर्मगीं कहीं न कहीं

आ गए लब पे दिल-नशीं नाले
जा ही पहुँचेंगे अब कहीं न कहीं

हम समझते हैं हज़रत-ए-'बेख़ुद'
चोट खा आए हो कहीं न कहीं