आह जिस वक़्त सर उठाती है
अर्श पर बर्छियाँ चलाती है
नाज़-बरदार-ए-लब है जाँ जब से
तेरे ख़त की ख़बर को पाती है
ऐ शब-ए-हिज्र रास्त कह तुझ को
बात कुछ सुब्ह की भी आती है
चश्म-ए-बद्दूर-चश्म-ए-तर ऐ 'मीर'
आँखें तूफ़ान को दिखाती है
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ग़ज़ल
आह जिस वक़्त सर उठाती है
मीर तक़ी मीर