आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ
अब कहाँ वो बादिया-पैमाइयाँ
बहर-ए-ग़म है और दिल-ए-ख़ल्वत-पसंद
बादा ही बादा है और गहराइयाँ
ग़फ़लतें अब सू-ए-मंज़िल ले चलीं
होती जाती हैं ख़जिल दानाइयाँ
मेरे तलवों के लहू का फ़ैज़ है
ये कहाँ थीं दश्त में रानाइयाँ
फ़र्क़ क्या है ज़िंदगी ओ मौत में
उफ़ मोहब्बत की क़यामत-ज़ाइयाँ
फिर न उभरा जो कोई डूबा यहाँ
उफ़-रे बहर-ए-इश्क़ की गहराइयाँ
जोश-ए-तूफ़ाँ है कि मौजों का ख़रोश
अब लिए है गोद में गहराइयाँ
ले उड़ा नश्शा ख़याल-ए-यार का
आ गईं हम को फ़लक-पैमाइयाँ
दोनों आलम डूब कर गुम हो गए
अल्लाह अल्लाह क़ल्ब की गहराइयाँ
सर से ऊँचा हो गया पानी 'जिगर'
मुंतज़िर थीं बहर की गहराइयाँ
ग़ज़ल
आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ
जिगर बरेलवी