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आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ | शाही शायरी
aah hum hain aur shikasta-paiyan

ग़ज़ल

आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ

जिगर बरेलवी

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आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ
अब कहाँ वो बादिया-पैमाइयाँ

बहर-ए-ग़म है और दिल-ए-ख़ल्वत-पसंद
बादा ही बादा है और गहराइयाँ

ग़फ़लतें अब सू-ए-मंज़िल ले चलीं
होती जाती हैं ख़जिल दानाइयाँ

मेरे तलवों के लहू का फ़ैज़ है
ये कहाँ थीं दश्त में रानाइयाँ

फ़र्क़ क्या है ज़िंदगी ओ मौत में
उफ़ मोहब्बत की क़यामत-ज़ाइयाँ

फिर न उभरा जो कोई डूबा यहाँ
उफ़-रे बहर-ए-इश्क़ की गहराइयाँ

जोश-ए-तूफ़ाँ है कि मौजों का ख़रोश
अब लिए है गोद में गहराइयाँ

ले उड़ा नश्शा ख़याल-ए-यार का
आ गईं हम को फ़लक-पैमाइयाँ

दोनों आलम डूब कर गुम हो गए
अल्लाह अल्लाह क़ल्ब की गहराइयाँ

सर से ऊँचा हो गया पानी 'जिगर'
मुंतज़िर थीं बहर की गहराइयाँ