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आह ऐ सौदा-ए-ख़ाम-ए-आरज़ू | शाही शायरी
aah ai sauda-e-KHam-e-arzu

ग़ज़ल

आह ऐ सौदा-ए-ख़ाम-ए-आरज़ू

अकबर हैदरी

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आह ऐ सौदा-ए-ख़ाम-ए-आरज़ू
ता-ब-कै आख़िर निज़ाम-ए-आरज़ू

ज़ब्त-ए-आह-ए-दिल-शिकन और मैं हज़ीं
कर रहा हूँ एहतिराम-ए-आरज़ू

होशियार ऐ इंफ़िआ'ल-ए-कैफ़-ज़ा
हुस्न तक पहुँचा पयाम-ए-आरज़ू

चश्म-ए-लुत्फ़-आगीं नए अंदाज़ से
ले रही है इंतिक़ाम-ए-आरज़ू

अहल-ए-दिल ज़िंदा हैं किस उम्मीद पर
नज़्म-ए-दुनिया है निज़ाम-ए-आरज़ू

यास की गुंजाइशें किस दिल में हैं
ले रहा है कौन नाम-ए-आरज़ू

बज़्म-ए-अंजुम जब सरापा-गोश थी
काश तुम सुनते पयाम-ए-आरज़ू

आह अब ख़ुद्दारी-ए-अकबर कहाँ
हो गई वो भी ग़ुलाम-ए-आरज़ू