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आगे पहुँचा जल का धारा बजरा पीछे छूट गया | शाही शायरी
aage pahuncha jal ka dhaara bajra pichhe chhuT gaya

ग़ज़ल

आगे पहुँचा जल का धारा बजरा पीछे छूट गया

नश्तर ख़ानक़ाही

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आगे पहुँचा जल का धारा बजरा पीछे छूट गया
रस्ता छोड़ सवारों को मैं पियादा पीछे छूट गया

ये बस्ती कौन सी बस्ती है आ के कहाँ बस ठहर गई
जिस धाम उतरना चाहा था वो क़स्बा पीछे छूट गया

आगे आगे लम्बी डगर है रेत भरे मैदानों की
जिस तट इक पल ठहरे थे वो दरिया पीछे छूट गया

बैठे हैं सैलानी सारे पतझड़ है विश्वासों का
मंदिर छूटा गिरजा छूटा का'बा पीछे छूट गया

वक़्त की ख़ाना-बंदी सारी अब के सफ़र में धूल हुई
माज़ी कैसा हाल कहाँ का फ़र्दा पीछे छूट गया

कितने कुछ थे जीवन-साथी कितने कुछ थे लहू शरीक
चेहरा सब का साथ है लेकिन रिश्ता पीछे छूट गया

छोटा कमरा हब्स बला का छोटी अक़्ल के आशिक़ हम
वहशत करने जाएँ कहाँ जब सहरा पीछे छूट गया