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आग पानी भी है मिट्टी है हवा है मुझ में | शाही शायरी
aag pani bhi hai miTTi hai hawa hai mujh mein

ग़ज़ल

आग पानी भी है मिट्टी है हवा है मुझ में

सीमा गुप्ता

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आग पानी भी है मिट्टी है हवा है मुझ में
मेरे ख़ालिक़ का कोई राज़ छुपा है मुझ में

हो न जाए तह-ओ-बाला कहीं दुनिया सारी
एक तूफ़ान-ए-बला-ख़ेज़ बपा है मुझ में

रोक लेती हूँ क़दम ख़ुद ही ग़लत राहों से
ऐसा लगता है कोई मुझ से बड़ा है मुझ में

एक मुद्दत से वो ख़ामोश है 'सीमा' लेकिन
एक मुद्दत से वही चीख़ रहा है मुझ में