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आग के फूल पे शबनम के निशाँ ढूँडोगे | शाही शायरी
aag ke phul pe shabnam ke nishan DhunDoge

ग़ज़ल

आग के फूल पे शबनम के निशाँ ढूँडोगे

दीपक क़मर

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आग के फूल पे शबनम के निशाँ ढूँडोगे
तुम हक़ीक़त के लिए वहम-ओ-गुमाँ ढूँडोगे

कौन सी आस में ये सारा जहाँ ढूँडोगे
एक आवारा सी ख़ुशबू को कहाँ ढूँडोगे

साथ कुछ रोज़ का है रास्ता चलते लोगो
हम चले जाएँगे क़दमों के निशाँ ढूँडोगे

तीर तरकश में अगर बच भी गए तो क्या है
मिल न पाएगी कहीं अपनी कमाँ ढूँडोगे

रात की गोद में ख़ुशियों के सितारे भर लो
फिर तो सूरज को लिए ऐसा समाँ ढूँडोगे

जब चले जाएँगे बंजारे बहारें ले कर
फूल वालों की नगर भर में दुकाँ ढूँडोगे

इस सराए से निकल आगे बढ़ोगे जब भी
चाँद तारों से परे अपना मकाँ ढूँडोगे