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आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो | शाही शायरी
aag ho dil mein to aankhon mein dhanak paida ho

ग़ज़ल

आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो

साक़ी फ़ारुक़ी

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आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो
रूह में रौशनी लहजे में चमक पैदा हो

एक शोला मेरी आवाज़ में लहराता है
ख़ून में लहर ख़यालों में ललक पैदा हो

क़त्ल करने का इरादा है मगर सोचता हूँ
तू अगर आए तो हाथों में झिजक पैदा हो

इस तरह अपनी ही सच्चाई पर इसरार न कर
ये न हो और तिरी बात में शक पैदा हो

मुझ से बहते हुए आँसू नहीं लिक्खे जाते
काश इक दिन मेरे लफ़्ज़ों में लचक पैदा हो