आए क्या तेरा तसव्वुर ध्यान में
कुछ से कुछ है आन ही की आन में
याँ इशारात-ए-ग़लत पर ज़िंदगी
वाँ अदा है और ही सामान में
तेग़-ए-क़ातिल है रग-ए-गर्दन मिरी
आब-ए-पैकाँ दम तन-ए-बे-जान में
या तो क़ातिल हो गया रहम-आश्ना
या पड़े होंगे कहीं मैदान में
अश्क अपने फिर फिरा कर हर तरफ़
आए आख़िर तेरे ही दामान में
हाए कैसे कैसे वारस्ता-मिज़ाज
सर-निगूँ दम बंद हैं ज़िंदान में
काबा आँखों में समाता ही नहीं
क्या बुतों ने कह दिया कुछ कान में
आँख के उठते ही उठते कुछ न था
हम चले अरमान ही अरमान में
दैर-ओ-काबा पर नहीं मौक़ूफ़ कुछ
और ही कुछ शान है हर शान में
गिर्या-ए-सद-सिर्री और हम कम-हौसला
कश्ती अपनी आ गई तूफ़ान में
जन्नत ओ दोज़ख़ से क्या उम्मीद-ओ-बीम
हसरतें सी हसरतें हैं जान में
ख़ुद-परस्ती और इस्लाम-आफ़रीं
काबा-ए-आशिक़ है कुफ़रिस्तान में
ऐ 'क़लक़' कल तक गदा-ए-दैर थे
आज दा'वे हो गए ईमान में
ग़ज़ल
आए क्या तेरा तसव्वुर ध्यान में
ग़ुलाम मौला क़लक़