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आए हम शहर-ए-ग़ज़ल में तो इस आग़ाज़ के साथ | शाही शायरी
aae hum shahr-e-ghazal mein to is aaghaz ke sath

ग़ज़ल

आए हम शहर-ए-ग़ज़ल में तो इस आग़ाज़ के साथ

रज़ी अख़्तर शौक़

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आए हम शहर-ए-ग़ज़ल में तो इस आग़ाज़ के साथ
मुद्दतों रक़्स किया हाफ़िज़-ए-शीराज़ के साथ

अव्वल-ए-इश्क़ है और हम-सफ़री की लज़्ज़त
और आहिस्ता क़दम और ज़रा नाज़ के साथ

अव्वल अव्वल तो धनक बन के उड़ा वो ताइर
और फिर रंग बदलते गए परवाज़ के साथ

एक वीरान दरीचे पे ख़िज़ाँ की बारिश
कोई तस्वीर बनाती रही आवाज़ के साथ

मैं वो सरशार कि था नश्शा-ए-यक-ख़्वाब बहुत
इस ने ताबीर भी दी ख़्वाब के आग़ाज़ के साथ

है कोई वाक़िफ़-ए-असरार सर-ए-मय-ख़ाना
क्या ये मीना से सुराही ने कहा राज़ के साथ

हम ने ही दिल से हम-आहंग गुलू को रक्खा
लोग लय अपनी बदलते रहे हर साज़ के साथ