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आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता | शाही शायरी
aadmi KHwar bhi hota hai nahin bhi hota

ग़ज़ल

आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता

अफ़ज़ल ख़ान

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आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता
इश्क़ आज़ार भी होता है नहीं भी होता

ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
उन का घर-बार भी होता है नहीं भी होता

ज़िंदगी सहल-पसंदी में बसर कर लेना
कार-ए-दुश्वार भी होता है नहीं भी होता

कार-ए-दुनिया ही कुछ ऐसा है कि दिल से तिरा दर्द
सिलसिला-वार भी होता है नहीं भी होता

शादी-ओ-मर्ग ने ये नुक्ता बताया है कि वक़्त
तेज़-रफ़्तार भी होता है नहीं भी होता

'अफ़ज़ल' और क़ैस ने क़ानून बनाया है कि इश्क़
दूसरी बार भी होता है नहीं भी होता