आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता
इश्क़ आज़ार भी होता है नहीं भी होता
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
उन का घर-बार भी होता है नहीं भी होता
ज़िंदगी सहल-पसंदी में बसर कर लेना
कार-ए-दुश्वार भी होता है नहीं भी होता
कार-ए-दुनिया ही कुछ ऐसा है कि दिल से तिरा दर्द
सिलसिला-वार भी होता है नहीं भी होता
शादी-ओ-मर्ग ने ये नुक्ता बताया है कि वक़्त
तेज़-रफ़्तार भी होता है नहीं भी होता
'अफ़ज़ल' और क़ैस ने क़ानून बनाया है कि इश्क़
दूसरी बार भी होता है नहीं भी होता
ग़ज़ल
आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता
अफ़ज़ल ख़ान