आदमी अपनी ज़ात में तन्हा
आलम-ए-शश-जिहात में तन्हा
ऐ ख़ुदा तू ही बे-मिसाल नहीं
मैं भी हूँ काएनात में तन्हा
मुझ को हर एक बात का ग़म है
मैं हूँ हर एक बात में तन्हा
मौत के दश्त-ए-बे-कनार में गुम
शहर के हादसात में तन्हा
मुझ को किस जुर्म में उतार दिया
कार-ज़ार-ए-हयात में तन्हा
बे-अमाँ दुश्मनों की ज़द में हूँ
दहर के सोमनात में तन्हा
आप-अपनी तलाश है मुझ को
हूँ अजब मुश्किलात में तन्हा
ग़ज़ल
आदमी अपनी ज़ात में तन्हा
जमील यूसुफ़