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आदमी आदमी के बस का नहीं | शाही शायरी
aadmi aadmi ke bas ka nahin

ग़ज़ल

आदमी आदमी के बस का नहीं

मुज़दम ख़ान

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आदमी आदमी के बस का नहीं
और ये क़िस्सा सौ बरस का नहीं

सिर्फ़ तस्वीर खींच सकता है
दुख तिरे कैमरे के बस का नहीं

जब ये आती है तो नहीं जाती
आगही है हुज़ूर चसका नहीं

जलती बत्ती है वो हवा हूँ मैं
मसअला सिर्फ़ दस्तरस का नहीं

रिक्शे वाले ने इस को बतलाया
ये तिरा मुंतज़िर है बस का नहीं