आबशारों की याद आती है
फिर किनारों की याद आती है
जो नहीं हैं मगर उन्हीं से हूँ
उन नज़ारों की याद आती है
ज़ख़्म पहले उभर के आते हैं
फिर हज़ारों की याद आती है
आइने में निहार कर ख़ुद को
कुछ इशारों की याद आती है
और तो मुझ को याद क्या आता
उन पुकारों की याद आती है
आसमाँ की सियाह रातों को
अब सितारों की याद आती है

ग़ज़ल
आबशारों की याद आती है
कुमार विश्वास