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आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है | शाही शायरी
aabla-pai hai mahrumi hai ruswai hai

ग़ज़ल

आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है

ज़रीना सानी

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आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है
उस बुत-ए-नाज़ का दिल फिर भी तमन्नाई है

मेरी आँखों से टपकते हैं लहू के आँसू
आज बे-लौस मोहब्बत की भी रुस्वाई है

लब पे फिर नाम वही हुस्न वही आँखों में
ऐ दिल-ए-ज़ार यही तेरी शकेबाई है

मज़हका-खेज़ है अंदाज़-ए-तकल्लुम उन का
मय-ए-उल्फ़त मगर आँखों में उतर आई है

'सानी'-ए-ज़ार तू अब और करेगी क्या क्या
आस्ताने पे मुसलसल तो जबीं-साई है