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आबादियों में खो गया सहराओं का जुनून | शाही शायरी
aabaadiyon mein kho gaya sahraon ka junun

ग़ज़ल

आबादियों में खो गया सहराओं का जुनून

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

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आबादियों में खो गया सहराओं का जुनून
शहरों का जमघटों में गया गाँव का सुकून

हालात के असीर हुए मस्ख़ हो गए
चेहरे पे जिन के दौड़ता था नाज़ुकी का ख़ून

तहज़ीब-ए-नौ की रौशनी में जल-बुझे तमाम
माज़ी की यादगार मिरे इल्म और फ़ुनून

बेचैन ज़िंदगी के तक़ाज़े अजीब हैं
फिर उस जगह चलें जहाँ खो आए हैं सुकून

ये तजरबा भी गर्दिश-ए-हालात से हुआ
कैसे सपेद होता है हर आश्ना का ख़ून

लो काम होश से ये नया दौर है 'मतीन'
वहशत न साथ देगी न काम आएगा जुनून