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आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ | शाही शायरी
aa tujhko KHayal mein basaun

ग़ज़ल

आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ

रज़ा हमदानी

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आ तुझ को ख़याल में बसाऊँ
सोए हुए दर्द को जगाऊँ

दिल फटने लगा है यादशब-ए-महबूब
आ तुझ को ही अब गले लगाऊँ

जुज़ तेरे न सुन सके कोई भी
इस लय में तुझे मैं गुनगुनाऊँ

ऐ नग़्मा-तराज़ जिस्म-ए-मौज़ूँ
मिस्रे की तरह तुझे उठाऊँ

जो गुज़रा है तेरी ख़ल्वतों में
कैसे वो ज़माना भूल जाऊँ

हो बस में मिरे तो संग-दिल को
हालात का आईना दिखाऊँ