आ तेरी गली में मर गए हम 
मंज़ूर जो था सो कर गए हम 
तुझ बिन गुलशन में गर गए हम 
जूँ शबनम चश्म-तर गए हम 
पाते नहीं आप को कहीं याँ 
हैरान हैं किस के घर गए हम 
उस आईना-रू के हो मुक़ाबिल 
मालूम नहीं किधर गए हम 
गो बज़्म में हम से वो न बोला 
बातें आँखों में कर गए हम 
जूँ शम्अ उस अंजुमन से 'बेदार' 
ले दाग़-ए-दिल-ओ-जिगर गए हम
        ग़ज़ल
आ तेरी गली में मर गए हम
मीर मोहम्मदी बेदार

