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आ गुमाँ से गुज़र के देखेंगे | शाही शायरी
aa guman se guzar ke dekhenge

ग़ज़ल

आ गुमाँ से गुज़र के देखेंगे

हमदम कशमीरी

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आ गुमाँ से गुज़र के देखेंगे
आसमाँ से उतर के देखेंगे

डूब कर आ उभर के देखेंगे
पेच सारे भँवर के देखेंगे

ख़त्म हो रात का तवील सफ़र
ज़ीना ज़ीना उतर के देखेंगे

किस क़दर है अमीक़ सन्नाटा
अपने अंदर उतर के देखेंगे

क्या गुज़रती है ज़िंदगी के बा'द
आओ कुछ देर मर के देखेंगे

पास बाक़ी तकान है कितनी
रास्ते में ठहर के देखेंगे

लोग सब एक ही क़िमाश के हैं
क्या उधर क्या इधर के देखेंगे