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अज़मत-ए-फ़िक्र के अंदाज़ अयाँ भी होंगे | शाही शायरी
azmat-e-fikr ke andaz ayan bhi honge

ग़ज़ल

अज़मत-ए-फ़िक्र के अंदाज़ अयाँ भी होंगे

सादिक़ नसीम

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अज़मत-ए-फ़िक्र के अंदाज़ अयाँ भी होंगे
हम ज़माने में सुबुक हैं तो गराँ भी होंगे

जिन सितारों को ख़ुदा मान के पूजा था कभी
अब उन्हीं पर मिरे क़दमों के निशाँ भी होंगे

कैसे रह सकती हैं जन्नत की फ़ज़ाएँ शफ़्फ़ाफ़
ख़ाक उड़ाने को हमीं लोग वहाँ भी होंगे

बे-सुतूँ अज़मत-ए-फ़र्हाद का मज़हर है तो क्या
अहल-ए-दिल कितने ही बेनाम-ओ-निशाँ भी होंगे

दिल कई और भी धड़केंगे मिरे दिल की तरह
अपने क़िस्से ब-हदीस-ए-दिगराँ भी होंगे

यूँ तो तज़ईन-ए-गुल-ओ-ग़ुन्चा में शामिल हैं सभी
हाए वो रंग जो अब हर्फ़-ए-ख़िज़ाँ भी होंगे

जब शगुफ़्त-ए-गुल-ए-बादाम की रुत आएगी
कोएटे को नहीं भूलेंगे जहाँ भी होंगे

अव्वलीं दीद में ही अपनी निगाहें खो कर
ज़िंदगी-भर तिरी जानिब निगराँ भी होंगे

ख़ुद-नुमाई के लिए बनते हो मज़लूम 'नसीम'
ज़ख़्म खाए हैं तो कुछ उन के निशाँ भी होंगे