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कश्ती-ए-दिल नज़्र-ए-तूफ़ाँ हो गई | शाही शायरी
kashti-e-dil nazr-e-tufan ho gai

ग़ज़ल

कश्ती-ए-दिल नज़्र-ए-तूफ़ाँ हो गई

अर्श सहबाई

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कश्ती-ए-दिल नज़्र-ए-तूफ़ाँ हो गई
एक मुश्किल और आसाँ हो गई

सुब्ह-दम शबनम को जाने क्या हुआ
सोहबत-ए-गुल से गुरेज़ाँ हो गई

उस नज़र की सादगी तो देखिए
जो तिरे जल्वों पे क़ुर्बां हो गई

फूल को हैरत-ज़दा सा देख कर
हर कली गुलशन में हैराँ हो गई

मेरे पहलू से वो उठ कर क्या गए
दिल की दुनिया सख़्त वीराँ हो गई

दिल की पैहम बे-क़रारी के निसार
बढ़ते बढ़ते आफ़त-ए-जाँ हो गई

देख कर मेरी परेशानी को 'अर्श'
ज़िंदगी ख़ुद भी परेशाँ हो गई