वो अजनबी था ग़ैर था किस ने कहा न था
दिल को मगर यक़ीन किसी पर हुआ न था
हम को तो एहतियात-ए-ग़म-ए-दिल अज़ीज़ थी
कुछ इस लिए भी कम-निगही का गिला न था
दस्त-ए-ख़याल-ए-यार से फूटे शफ़क़ के रंग
नक़्श-ए-क़दम भी रंग-ए-हिना के सिवा न था
ढूँडा उसे बहुत कि बुलाया था जिस ने पास
जल्वा मगर कहीं भी सदा के सिवा न था
कुछ इस क़दर थी गर्मी-ए-बाज़ार-ए-आरज़ू
दिल जो ख़रीदता था उसे देखता न था
कैसे करेंगे ज़िक्र-ए-हबीब-ए-जफ़ा-पसंद
जब नाम दोस्तों में भी लेना रवा न था
कुछ यूँ ही ज़र्द ज़र्द सी 'नाहीद' आज थी
कुछ ओढ़नी का रंग भी खिलता हुआ न था
ग़ज़ल
वो अजनबी था ग़ैर था किस ने कहा न था
किश्वर नाहीद

