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दिल-ए-बेताब को बहलाने चले आए हैं | शाही शायरी
dil-e-betab ko bahlane chale aae hain

ग़ज़ल

दिल-ए-बेताब को बहलाने चले आए हैं

अर्श सहबाई

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दिल-ए-बेताब को बहलाने चले आए हैं
हम सर-ए-शाम ही मय-ख़ाने चले आए हैं

दिल ने मुश्किल से फ़रामोश किया था जिन को
लब पे फिर आज वो अफ़्साने चले आए हैं

बे-बुलाए तो यहाँ रिंद न आते साक़ी
याद फ़रमाया है सहबा ने चले आए हैं

राह-ए-मय-ख़ाना से ग़फ़लत में गुज़र ही जाते
देख कर रक़्स में पैमाने चले आए हैं

आज पीने का इरादा तो नहीं था लेकिन
बातों बातों ही में मय-ख़ाने चले आए हैं