EN اردو
Shahr शायरी | शाही शायरी

Shahr

12 शेर

सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़'
तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं

अहमद महफ़ूज़




भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला

अलीम मसरूर




जो मेरे गाँव के खेतों में भूक उगने लगी
मिरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली

आरिफ़ शफ़ीक़




है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है

बशीर बद्र




तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे

जमाल एहसानी




दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहाँ मत आओ
इस बड़े शहर में तन्हाई भी मर जाती है

जावेद नासिर




तुम भी इस शहर में बन जाओगे पत्थर जैसे
हँसने वाला यहाँ कोई है न रोने वाला

कैलाश माहिर