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रास्ता शायरी | शाही शायरी

रास्ता

12 शेर

मैं ख़ुद ही अपने तआक़ुब में फिर रहा हूँ अभी
उठा के तू मेरी राहों से रास्ता ले जा

लुत्फ़ुर्रहमान




कोई रस्ता कहीं जाए तो जानें
बदलने के लिए रस्ते बहुत हैं

महबूब ख़िज़ां




यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो

निदा फ़ाज़ली




यक़ीनन रहबर-ए-मंज़िल कहीं पर रास्ता भूला
वगर्ना क़ाफ़िले के क़ाफ़िले गुम हो नहीं सकते

निसार इटावी




सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है
अब आसमान तलक रास्ता बनाना है

शहबाज़ ख़्वाजा