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Qismat शायरी | शाही शायरी

Qismat

40 शेर

मेरी क़िस्मत है ये आवारा-ख़िरामी 'साजिद'
दश्त को राह निकलती है न घर आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद




न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है
वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है

there is naught from worrying, nor from planning gained
for everything that happens is by fate ordained

हैरत इलाहाबादी




जो चल पड़े थे अज़्म-ए-सफ़र ले के थक गए
जो लड़खड़ा रहे थे वो मंज़िल पे आए हैं

हैरत सहरवर्दी




वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं
आरज़ूओं से फिरा करती हैं तक़दीरें कहीं

हसरत मोहानी




जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है
जो कि पेशानी पे लिक्खी है वो पेश आनी है

इमाम बख़्श नासिख़




फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन

जिगर मुरादाबादी




मक़्बूल हों न हों ये मुक़द्दर की बात है
सज्दे किसी के दर पे किए जा रहा हूँ मैं

whether or not accepted, it is up to fate
at her doorstep on and on, I myself prostrate

जोश मलसियानी