ख़ुदा के वास्ते इस को न टोको
यही इक शहर में क़ातिल रहा है
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
कौन पुरसाँ है हाल-ए-बिस्मिल का
ख़ल्क़ मुँह देखती है क़ातिल का
शैख़ अली बख़्श बीमार
9 शेर
ख़ुदा के वास्ते इस को न टोको
यही इक शहर में क़ातिल रहा है
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
कौन पुरसाँ है हाल-ए-बिस्मिल का
ख़ल्क़ मुँह देखती है क़ातिल का
शैख़ अली बख़्श बीमार