फिरता है मेरे दिल में कोई हर्फ़-ए-मुद्दआ
क़ासिद से कह दो और न जाए ज़रा सी देर
दाग़ देहलवी
अश्कों के निशाँ पर्चा-ए-सादा पे हैं क़ासिद
अब कुछ न बयाँ कर ये इबारत ही बहुत है
अहसन अली ख़ाँ
क्या भूल गए हैं वो मुझे पूछना क़ासिद
नामा कोई मुद्दत से मिरे काम न आया
फ़ना बुलंदशहरी
या उस से जवाब-ए-ख़त लाना या क़ासिद इतना कह देना
बचने का नहीं बीमार तिरा इरशाद अगर कुछ भी न हुआ
हक़ीर
मिरा ख़त पढ़ लिया उस ने मगर ये तो बता क़ासिद
नज़र आई जबीं पर बूँद भी कोई पसीने की
हीरा लाल फ़लक देहलवी
पहुँचे न वहाँ तक ये दुआ माँग रहा हूँ
क़ासिद को उधर भेज के ध्यान आए है क्या क्या
जलाल लखनवी
क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले
उस का पयाम दिल के सिवा कौन ला सके
ख़्वाजा मीर 'दर्द'