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फूल शायरी | शाही शायरी

फूल

18 शेर

काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या
फूलों की वारदात से घबरा के पी गया

साग़र सिद्दीक़ी




आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे
तितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर

शकेब जलाली




ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
न चमन में फेंक देना किसी फूल को मसल कर

शकील बदायुनी




काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ

शकील बदायुनी