काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें
befriend the thorns for they will be loyal until death
what of these flowers that will wilt with just a burning breath
अख़्तर शीरानी
फूल खिले हैं लिखा हुआ है तोड़ो मत
और मचल कर जी कहता है छोड़ो मत
अमीक़ हनफ़ी
फूलों की ताज़गी ही नहीं देखने की चीज़
काँटों की सम्त भी तो निगाहें उठा के देख
असअ'द बदायुनी
कुछ ऐसे फूल भी गुज़रे हैं मेरी नज़रों से
जो खिल के भी न समझ पाए ज़िंदगी क्या है
आज़ाद गुलाटी
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
आँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ
बशीर बद्र
रुक गया हाथ तिरा क्यूँ 'बासिर'
कोई काँटा तो न था फूलों में
बासिर सुल्तान काज़मी
फूलों को गुलिस्ताँ में कब रास बहार आई
काँटों को मिला जब से एजाज़-ए-मसीहाई
फ़िगार उन्नावी