अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे
मोहम्मद अल्वी
परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
उजाड़ उजाड़ दरख़्तों पे आशियाने थे
मोहम्मद अल्वी
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चिड़िया ने उड़ कर कहा मेरा है आकाश
बोला शिकरा डाल से यूँही होता काश
निदा फ़ाज़ली
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कुछ एहतियात परिंदे भी रखना भूल गए
कुछ इंतिक़ाम भी आँधी ने बदतरीन लिए
नुसरत ग्वालियारी
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अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए
शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब रोए
तारिक़ नईम
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