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मजदूर शायरी | शाही शायरी

मजदूर

30 शेर

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी




ख़ून मज़दूर का मिलता जो न तामीरों में
न हवेली न महल और न कोई घर होता

हैदर अली जाफ़री




इस लिए सब से अलग है मिरी ख़ुशबू 'आमी'
मुश्क-ए-मज़दूर पसीने में लिए फिरता हूँ

इमरान आमी




होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली है
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है

जमील मज़हरी




इन्ही हैरत-ज़दा आँखों से देखे हैं वो आँसू भी
जो अक्सर धूप में मेहनत की पेशानी से ढलते हैं

जमील मज़हरी




मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से

मजरूह सुल्तानपुरी




दुनिया मेरी ज़िंदगी के दिन कम करती जाती है क्यूँ
ख़ून पसीना एक किया है ये मेरी मज़दूरी है

मनमोहन तल्ख़