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आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए | शाही शायरी
aane wale jaane wale har zamane ke liye

ग़ज़ल

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

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आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए

ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं
मौत ही आती है ये मंज़िल दिखाने के लिए

मेरी पेशानी पे इक सज्दा तो है लिक्खा हुआ
ये नहीं मालूम है किस आस्ताने के लिए

उन का व'अदा और मुझे उस पर यक़ीं ऐ हम-नशीं
इक बहाना है तड़पने तिलमिलाने के लिए

जब से पहरा ज़ब्त का है आँसुओं की फ़स्ल पर
हो गईं मुहताज आँखें दाने दाने के लिए

आख़िरी उम्मीद वक़्त-ए-नज़अ उन की दीद थी
मौत को भी मिल गया फ़िक़रा न आने के लिए

अल्लाह अल्लाह दोस्त को मेरी तबाही पर ये नाज़
सू-ए-दुश्मन देखता है दाद पाने के लिए

नेमत-ए-ग़म मेरा हिस्सा मुझ को दे दे ऐ ख़ुदा
जम'अ रख मेरी ख़ुशी सारे ज़माने के लिए

नुस्ख़ा-ए-हस्ती में इबरत के सिवा क्या था 'हफ़ीज़'
सुर्ख़ियाँ कुछ मिल गईं अपने फ़साने के लिए