यही हालात इब्तिदा से रहे
लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे
जावेद अख़्तर
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
मैं अपने-आप से हर दम ख़फ़ा रहता हूँ यूँ 'आज़र'
पुरानी दुश्मनी हो जिस तरह दो ख़ानदानों में
कफ़ील आज़र अमरोहवी
मिल भी जाओ यूँही तुम बहर-ए-ख़ुदा आप से आप
जिस तरह हो गए हो हम से ख़फ़ा आप से आप
लाला माधव राम जौहर
लाई है कहाँ मुझ को तबीअत की दो-रंगी
दुनिया का तलबगार भी दुनिया से ख़फ़ा भी
मिद्हत-उल-अख़्तर
या ख़फ़ा होते थे हम तो मिन्नतें करते थे आप
या ख़फ़ा हैं हम से वो और हम मना सकते नहीं
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
मगर लोगों से अब ख़ाइफ़ ख़ुदा है
नरेश कुमार शाद