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गुलशन शायरी | शाही शायरी

गुलशन

9 शेर

गुलशन में न हम होंगे तो फिर सोग हमारा
गुल-पैरहन ओ ग़ुंचा-दहन करते रहेंगे

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला

अहमद फ़राज़




वही गुलशन है लेकिन वक़्त की पर्वाज़ तो देखो
कोई ताइर नहीं पिछले बरस के आशियानों में

अहमद मुश्ताक़




क्या इसी वास्ते सींचा था लहू से अपने
जब सँवर जाए चमन आग लगा दी जाए

अली अहमद जलीली




गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़




कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन
जब तक उलझे न काँटों से दामन

फ़ना निज़ामी कानपुरी




मैं उस गुलशन का बुलबुल हूँ बहार आने नहीं पाती
कि सय्याद आन कर मेरा गुलिस्ताँ मोल लेते हैं

हैदर अली आतिश