EN اردو
Deshbhakti शायरी | शाही शायरी

Deshbhakti

8 शेर

बोझ उठाए हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं माँ तिरी ये उम्र तो आराम की थी

परवीन शाकिर