वो अयादत को न आया करें मैं दर गुज़रा
हाल-ए-दिल पूछ के और आग लगा जाते हैं
लाला माधव राम जौहर
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बहर-ए-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
कब से तू बीमार है और क्या तुझे आज़ार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कभू बीमार सुन कर वो अयादत को तो आता था
हमें अपने भले होने से वो आज़ार बेहतर था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ले मेरी ख़बर चश्म मिरे यार की क्यूँ-कर
बीमार अयादत करे बीमार की क्यूँ-कर
ताबाँ अब्दुल हई